आओ मनाए #नये_साल_को
नये साल को आप किस प्रकार मनाते हो, शायद आपका उत्तर होगा जश्न मानकर लेकीन इस नए वर्ष को कुछ खास तरीके के साथ मनाए ।
हमने अपनी सोच बदल कर
हमने अपनी सोच बदल कर
- जैसे हम अश्लील मूर्तियाँ देखते हैं तो अश्लीलता उत्पन्न होती है क्योंकि उस उत्तेजक मूर्ति ने अंदर चिंगारी लगा दी, पैट्रोल सुलगने लगा। ऐसी तस्वीरों को तिलांजलि दे दें।
- जैसे हम देशभक्तों की जीवनी पढ़ते हैं और मूर्ति देखते हैं तो हमारे अंदर देशभक्ति की प्रेरणा होती है। ऐसी तस्वीर घर में हों तो कोई हानि नहीं।
- यदि हम साधु-संत-फकीरों तथा अच्छे चरित्रावान नागरिकों की जीवनी पढ़ते-सुनते हैं तो सर्व दोष शांत होकर हम अच्छे नागरिक बनने का विचार करते हैं। इसलिए हमें संत तथा सत्संग की अति आवश्यकता है जहाँ अच्छे विचार बताए जाते हैं।
- हम अपनी छोटी-सी बेटी को स्नान कराते हैं, वस्त्रा पहनाते हैं। इस प्रकार सब करते हैं। वही बेटी विवाह के पश्चात् ससुराल जाती है। अन्य की बेटी हमारे घर पर बहू बनकर आती है। अब नया क्या हो गया? यह शुद्ध विचार से विचारने की बात है। इस प्रकार विवेक करने से खानाबदोश विचार नष्ट हो जाते हैं। साधु भाव उत्पन्न हो जाता है।
- समाचार पत्रों में भी इतनी अश्लील तस्वीरें छपती हैं जो युवाओं को असामान्य कर देती हैं। कुछ कच्छे की प्रसिद्धि में लड़कियाँ केवल अण्डरवीयर तथा चोली (ब्रेजीयर) पहनती हैं जो गलत है। इसी प्रकार पुरूष भी अण्डरवीयर (कच्छे) की प्रसिद्धि के लिए केवल कच्छा पहनकर खड़े दिखाई देते हैं जो महानीचता का प्रतीक है। इनको बंद किया जाना चाहिए। इसके लिए सभ्य संगठन की आवश्यकता है जो संवैधानिक तरीके से इस प्रकार की अश्लीलता को बंद कराने के लिए संघर्ष करे तथा मानव को चरित्रावान, दयावान बनाने के लिए अच्छी पुस्तकें उपलब्ध करवाए। सत्संग की व्यवस्था करवाए।
- अच्छे विचार सुनने वाले बच्चे संयमी होते हैं। देखने में आता है कि जिस बेटी का पति विवाह के कुछ दिन पश्चात् फौज में अपनी ड्यूटी पर चला गया। लगभग आठ-नौ महीने छुट्टी पर नहीं आता। कुछ बेटियों के पति अपने रोजगार के लिए विदेश चले जाते हैं और तीन वर्ष तक भी नहीं लौटते। वे बेटियाँ संयम से रहती हैं। किसी गैर-पुरूष को स्वपन में भी नहीं देखती। ये उत्तम खानदान की बेटियाँ हैं। पुरूष भी इतने दिन संयम में रहता है। वे बच्चे ऊँचे घर के हैं। असल खानदान के होते हैं। जो भड़वे होते हैं, वे तांक-झांक करते रहते हैं। सिर के बालों की नये स्टाईल से कटिंग कराकर काले-पीले चश्में लगाकर गली-गली में कुत्तों की तरह फिरते हैं। वे खानाबदोश होते हैं। वे किसी गलत हरकत को करके बसे-बसाए घर को उजाड़ देते हैं क्योंकि वे किसी की बहन-बेटी को उन्नीस-इक्कीस कहेंगे जिससे झगड़ा होगा। लड़ाई का रूप न जाने कहाँ तक विशाल हो जाए। किसी की मृत्यु भी हो सकती है। उस एक भड़वे ने दो घरों का नाश कर दिया। इसलिए अपने बच्चों को बचपन से ही सत्संग के वचन सुनाकर विचारवान तथा चरित्रावान बनाना चाहिए।
और इस नये वर्ष पाये "जीने की राह पुस्तक बिलकुल मुफ़्त
आप पुस्तक के लिए हमे अपना नाम पता ओर मोबाइल नंबर कमेंट बॉक्स मे बताए ताकि पुस्तक आसानी से आपके पास पहुच सके।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वैबसाइट जरूर देखे
Comments
Post a Comment