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Showing posts from 2018

नया साल, नयी बात

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NEW YEAR,NEW VISION यूं तो पूरे विश्व में नया साल अलग-अलग दिन मनाया जाता है, और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में भी नए साल की शुरूआत अलग-अलग समय  होती है। लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी से नए साल की शुरूआत मानी जाती है। चूंकि 31 दिसंबर को एक वर्ष का अंत होने के बाद 1 जनवरी से नए अंग्रेजी कैलेंडर वर्ष की शुरूआत होती है। इसलिए इस दिन को पूरी दुनिया में नया साल शुरू होने के उपलक्ष्य में पर्व की तरह मनाया जाता है। चूंकि साल नया है, इसलिए नई उम्मीदें, नए सपने, नए लक्ष्य, नए आईडियाज के साथ इसका स्वागत किया जाता है। नया साल मनाने के पीछे मान्यता है कि साल का पहला दिन अगर उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाए, तो साल भर इसी उत्साह और खुशियों के साथ ही बीतेगा। लेकिन क्या वास्तव मे ऐसा  होता हे, शायद आपका उत्तर होगा नहीं चूंकि हम जैसा सोचते है वेसा कभी नहीं होता, अगर होता है तो भी भगवान की मर्ज़ी से तो फिर क्यू ना हम नए साल की शुरुवान कुछ अच्छी सी किताबों के साथ करे  अब मे आपको बताता हु कुछ एसी किताबों के बारे मे जो हो सकता है आपके  जीवन को ही बदल कर रख दे।  जीने की राह :- जी हा

मानव जीवन की आम धारणा

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1. मानव जीवन की आम धारणा | जीने की राह मांगुँ कुछ थिर ना रहाई। देखत नैन चला जग जाई।। एक लख पूत सवा लख नाती। उस रावण कै दीवा न बाती।। भावार्थ: - यदि एक मनुष्य एक पुत्रा से वंश बेल को सदा बनाए रखना चाहता है तो यह उसकी भूल है। जैसे श्रीलंका के राजा रावण के एक लाख पुत्रा थे तथा सवा लाख पौत्रा थे। वर्तमान में उसके कुल (वंश) में कोई घर में दीप जलाने वाला भी नहीं है। सब नष्ट हो गए। इसलिए हे मानव! परमात्मा से यह क्या माँगता है जो स्थाई ही नहीं है। यह अध्यात्म ज्ञान के अभाव के कारण पे्ररणा बनी है। परमात्मा आप जी को आपका संस्कार देता है। आपका किया कुछ नहीं हो रहा। उस वृद्ध की बात को मानें कि पुत्रा के होने से वंश वृद्धि होने से संसार में नाम बना रहता है। एक गाँव में प्रारम्भ में चार या पाँच व्यक्ति थे। उनके वंश के सैंकड़ों परिवार बने हैं। उनका वंश चल रहा है। उनका संसार में नाम भी चल रहा है। परंतु शास्त्रोक्त विधि से भक्ति न करने के कारण परमात्मा के विधानानुसार वह भला पुरूष कहीं गधा बनकर कष्ट उठा रहा होगा। वहाँ पर गधे के वंश की वृद्धि करके फिर कुत्ते का जन्म प्राप्त करके वहाँ उस

आओ मनाए #नये_साल_को

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नये साल को आप किस प्रकार मनाते हो, शायद आपका उत्तर होगा जश्न  मानकर लेकीन इस नए वर्ष को कुछ खास तरीके के साथ मनाए । हमने अपनी सोच बदल कर  जैसे हम अश्लील मूर्तियाँ देखते हैं तो अश्लीलता उत्पन्न होती है क्योंकि उस उत्तेजक मूर्ति ने अंदर चिंगारी लगा दी, पैट्रोल सुलगने लगा। ऐसी तस्वीरों को तिलांजलि दे दें। जैसे हम देशभक्तों की जीवनी पढ़ते हैं और मूर्ति देखते हैं तो हमारे अंदर देशभक्ति की प्रेरणा होती है। ऐसी तस्वीर घर में हों तो कोई हानि नहीं।  यदि हम साधु-संत-फकीरों तथा अच्छे चरित्रावान नागरिकों की जीवनी पढ़ते-सुनते हैं तो सर्व दोष शांत होकर हम अच्छे नागरिक बनने का विचार करते हैं। इसलिए हमें संत तथा सत्संग की अति आवश्यकता है जहाँ अच्छे विचार बताए जाते हैं। हम अपनी छोटी-सी बेटी को स्नान कराते हैं, वस्त्रा पहनाते हैं। इस प्रकार सब करते हैं। वही बेटी विवाह के पश्चात् ससुराल जाती है। अन्य की बेटी हमारे घर पर बहू बनकर आती है। अब नया क्या हो गया? यह शुद्ध विचार से विचारने की बात है। इस प्रकार विवेक करने से खानाबदोश विचार नष्ट हो जाते हैं। साधु भाव उत्पन्न हो जाता है। समाचार पत्रों में भ

Unit-5-नशा करता है विनाश......

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पार्ट -1 नशा चाहे शराब, सुल्फा, अफीम, हिरोईन आदि-आदि किसी का भी करते हो, यह आपका सर्वनाश का कारण बनेगा। नशा सर्वप्रथम तो इंसान को शैतान बनाता है। फिर शरीर का नाश करता है। शरीर के चार महत्वपूर्ण अंग हैं:- 1. फेफड़े, 2. जिगर (लीवर), 3. गुर्दे (ज्ञपकदमल), 4. हृदय। शराब सर्वप्रथम इन चारों अंगों को खराब करती है। सुल्फा (चरस) दिमाग को पूरी तरह नष्ट कर देता है। हिरोईन शराब से भी अधिक शरीर को खोखला करती है। अफीम से शरीर कमजोर हो जाता है। अपनी कार्यशैली छोड़ देता है। अफीम से ही चार्ज होकर चलने लगता है। रक्त दूषित हो जाता है। इसलिए इनको तो गाँव-नगर में भी नहीं रखे, घर की बात क्या। सेवन करना तो सोचना भी नहीं चाहिए। एक व्यक्ति दिल्ली पालम हवाई अड्डे पर नौकरी करता था। सन् 1997 की बात है। उस समय उसकी सेलरी (च्ंल) बारह हजार रूपये महीना थी। दिल्ली के गाँव में यह दास (रामपाल दास) सत्संग करने गया। वहाँ एक वृद्धा अपनी तीन पोतियों के साथ सत्संग वाले घर में आई जो नाते में सत्संग कराने वालों की चाची थी। वह गाँव के बाहरी क्षेत्रा में प्लाॅट में मकान बनाकर रहती थी। वह लड़का भी उसी का था जो दिल्ली हवाई

unit-4- मानव जीवन की आम धारणा

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मनुष्य जीवन का मूल उदेश्य  बड़ा होकर पढ़-लिखकर अपने निर्वाह की खोज करके विवाह कराकर परिवार पोषण करेंगे। बच्चों को उच्च शिक्षा तक पढ़ाऐंगे। फिर उनको रोजगार मिल जाए। उनका विवाह करेंगे। परमात्मा संतान को संतान दे। फिर हमारा कर्तव्य पूरा हुआ। कई बार गाँव या गवांड (पड़ौसी गाँव) के वृद्ध इकट्ठे होते तो आपस में कुशल-मंगल जानते तो एक ने कहा कि परमात्मा की कृपा से दो लड़के तथा दो लड़की हैं। कठिन परिश्रम करके पाला-पोसा तथा पढ़ाया, विवाह कर दिया। सब के सब बेटा-बेटियों वाले हैं। मेरा कार्य पूर्ण हुआ। 75 वर्ष का हो गया हूँ। अब बेशक मौत हो जाए, मेरा जीवन सफल हुआ। वंश बेल चल पड़ी, संसार में नाम रहेगा। विवेचन: - उपरोक्त प्रसंग में जो भी प्राप्त हुआ, वह पूर्व निर्धारित संस्कार ही प्राप्त हुआ, नया कुछ नहीं मिला। एक व्यक्ति का विवाह हुआ। संतान रूप में बेटी हुई। मानव समाज की धारणा रही है कि पुत्रा नहीं है तो उसका वंश नहीं चलता। (परंतु आध्यात्मिक ज्ञान की दृष्टि से पुत्रा-पुत्राी में कोई अंतर नहीं माना जाता) आशा लगी कि दूसरा पुत्र तो बेटा होगा। दूसरी भी लड़की हुई। फिर आशा लगी कि परमात्मा तीसरा तो पुत्र

unit - 3 मनुष्य जीवन का उद्देश्य

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पार्ट 1  एक भक्त सत्संग में जाने लगा। दीक्षा ले ली, ज्ञान सुना और भक्ति करने लगा। अपने मित्र से भी सत्संग में चलने तथा भक्ति करने के लिए प्रार्थना की। परंतु दोस्त नहीं माना। कह देता कि कार्य से फुर्सत (खाली समय) नहीं है। छोटे-छोटे बच्चे हैं। इनका पालन-पोषण भी करना है। काम छोड़कर सत्संग में जाने लगा तो सारा धँधा चैपट हो जाएगा। वह सत्संग में जाने वाला भक्त जब भी सत्संग में चलने के लिए अपने मित्र से कहता तो वह यही कहता कि अभी काम से फुर्सत नहीं है। एक वर्ष पश्चात् उस मित्र की मृत्यु हो गई। उसकी अर्थी उठाकर कुल के लोग तथा नगरवासी चले, साथ-साथ सैंकड़ों नगर-मौहल्ले के व्यक्ति भी साथ-साथ चले। सब बोल रहे थे कि राम नाम सत् है, सत् बोले गत् है। भक्त कह रहा था कि राम नाम तो सत् है परंतु आज भाई को फुर्सत है। नगरवासी कह रहे थे कि सत् बोले गत् है, भक्त कह रहा था कि आज भाई को फुर्सत है। अन्य व्यक्ति उस भक्त से कहने लगे कि ऐसे मत बोल, इसके घर वाले बुरा मानेंगे। भक्त ने कहा कि मैं तो ऐसे ही बोलूँगा। मैंने इस मूर्ख से हाथ जोड़कर प्रार्थना की थी कि सत्संग में चल, कुछ भक्ति कर ले। यह कहता था कि अ

Unit -2 भक्ति मार्ग पर यात्रा

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विशेष विवरण जब तक आध्यात्मिक ज्ञान नहीं, तब तक तो जीव माया के नशे में अपना उद्देश्य भूल चुका था और जैसा ऊपर बताया है कि शराबी नशे में ज्येष्ठ महीने की गर्मी में दिन के दोपहर के समय धूप में पड़ा-पड़ा पसीने व रेत में सना भी कह रहा होता है कि मौज हो रही है। परंतु नशा उतरने के पश्चात् उसे पता चलता है कि तू तो जंगल में पड़ा है, घर तो अभी दूर है। कबीर जी ने कहा है कि:- कबीर, यह माया अटपटी, सब घट आन अड़ी। किस-किस को समझाऊँ, या कूएै भांग पड़ी।। अध्यात्म ज्ञान रूपी औषधि सेवन करने से जीव का नशा उतर जाता है। फिर वह भक्ति के सफर पर चलता है क्योंकि उसे परमात्मा के पास पहुँचना है जो उसका अपना पिता है तथा वह सतलोक जीव का अपना घर है। यात्रा पर चलने वाला व्यक्ति सारे सामान को उठाकर नहीं चल सकता। केवल आवश्यक सामान लेकर यात्रा पर चलता है। इसी प्रकार भक्ति के सफर में अपने को हल्का होकर चलना होगा। तभी मंजिल को प्राप्त कर सकेंगे। भक्ति रूपी राह पर चलने के लिए अपने को मानसिक शांति का होना अनिवार्य है। मानसिक परेशानी का कारण है अपनी परंपराऐं तथा नशा, मान-बड़ाई, लोग-दिखावा, यह भार व्यर्थ के लिए खड़े ह

Unit-1- संतो की शिक्षा

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संतो की शिक्षा पार्ट 1 आज के समय मे हम भगवान को भूल गए है, इसका मुख्य कारण ये है की हमे यह वहां हो गया हे की हम इस मृत्यु लोक मे सदा ही ऐसे रहेंगे पर ऐसा नहीं हे। एक गाँव का व्यक्ति पहली बार श्री नानक देव जी के पास गया। उसने देखा कि संत जी मायूस अवस्था में एकांत में बैठे थे।(स्मरण कर रहे थे) उस आदमी ने सतनाम-वाहेगुरू बोला। श्री नानक जी ने भी उत्तर दिया। भोजन करवाया। ज्ञान विचार सुनाए। वह व्यक्ति चला गया। एक दिन फिर वही व्यक्ति आया और बोला महाराज जी! आप कभी खुश दिखाई नहीं देते। क्या कारण है? संत नानक जी ने कहा कि:- ना जाने काल की कर डारे, किस विधि ढ़ल जा पासा वे। जिन्हाते सिर ते मौत खुड़कदी, उन्हानूं केहड़ा हांसा वे।। भावार्थ:- संत नानक जी ने कहा कि हे भाई! इस मृत्युलोक में सब नाशवान हैं। पता नहीं किसकी जाने की बारी कब आ जाए? इसलिए जिनके सिर पर मौत गर्ज रही हो, उस व्यक्ति को नाचना-गाना, हँसी-मजाक कैसे अच्छा लगेगा? मूर्ख या नशे वाला व्यक्ति इस गंदे लोक में खुशी मनाता है। जैसे एक व्यक्ति की पत्नी को विवाह के दस वर्ष पश्चात् पुत्रा हुआ। उसके उत्पन्न होने की खुशी में लड्डू बनाए, बै